उत्तरी कोरिया के मामले में अमरीका पर एक साथ हमलावर हो गए चीन और रूस, समन्वय चकित कर देने वाला
एसा लगता है कि बीजिंग और मास्को इस समय विदेश नीति में भरपूर समन्वय के साथ क़दम उठा रहे हैं। अमरीका ने एक हफ़्ते तक सुरक्षा परिषद पर दबाव डाला कि उत्तरी कोरिया के ख़िलाफ़ निंदा प्रस्ताव पारित हो जाए।
प्युंगयांग के कोयले और फ़िशरी पर पूरी तरह प्रतिबंध पहले से ही लगा हुआ है लेकिन इसके बावजूद अमरीका ने जापान और दक्षिणी कोरिया से पहले ही सुरक्षा परिषद में एक मसौदा पेश कर दिया और दूसरों से मांग कि वे इसका समर्थन करें क्यों?.....इसलिए कि किम जोंग उन ने इंटरकांटीनैंटल मिसाइल का परीक्षण किया है।....लेकिन रूस और चीन ने वीटो कर दिया।....यह पिछले सोलह साल में पहली बार हुआ कि सदस्यों के बीच उत्तरी कोरिया पर मतभेद खुलकर बयान किया जा रहा है। अमरीका द्वारा लाए गए मसौदे में तंबाकू और तेल को निशाना बनाया गया था।
सुरक्षा परिषद की बैठक लगभग बेनतीजा समाप्त हो गई। उधर किम जोंग उन ने बाइडन से मुलाक़ात का प्रस्ताव ठुकरा दिया है। उत्तरी कोरिया के शासक की यह प्रतिक्रिया बहुत कुछ बताती है। इस इंकार में बहुत गहरे संदेश छिपे हैं। सबसे पहला संदेश तो यह है कि उत्तरी कोरिया को अमरीका की नाराज़गी की फ़िक्र नहीं है क्योंकि एक तो अमरीका अब इस हालत में नहीं रह गया है कि वह उत्तरी कोरिया पर धौंस जमा सके और दूसरे यह कि उत्तरी कोरिया को यक़ीन है कि चीन और रूस के साथ उसके संबंध प्रतिबंधों का सामना कर रही उत्तरी कोरिया की इकानामी के लिए नजात की नौका का काम करेंगे जैसा कि अब तक होता आया है।
दुनिया के बहुत से देशों यहां तक कि ख़ुद अमरीका में विचारकों के बयान लगातार आ रहे हैं कि पोस्ट अमेरिकन एरा की शुरुआत हो चुकी है यानी दुनिया अब जिस तरह के हालात से गुज़र रही है उनमें वाशिंग्टन यहां तक कि नैटो के पास भी किसी देश पर दबाव डालने और किसी सरकार को धमकाने की क्षमता नहीं रह गई।
यह विचार वैसे तो काफ़ी पहले से पनप रहा था लेकिन हालिया समय में यूक्रेन युद्ध से इस विचार को और ज़्यादा बल मिला है।
न्यूयार्क से आईआरआईबी के लिए कामरान नजफ़ज़ादे की रिपोर्ट।