भारत और पाकिस्तान के बीच हुई दोस्ती! क्या है दोनों देशों के बीच दोस्ती की कड़ी?
संयुक्त राष्ट्र संघ ने भांग के औषधी गुणों को देखते हुए उसको दवा के रूप में मान्यता दे दी है। यूएन द्वारा भांग को दी जाने वाली मान्यता को लेकर भारत और पाकिस्तान एक साथ खड़े नज़र आए।
भांग का इस्तेमाल हज़ारों साल से नशा करने और दवा के रूप में भारतीय उपमहाद्वीप समेत पूरी दुनिया में हो रहा है। अब संयुक्त राष्ट्र संघ में हुए ऐतिहासिक मतदान में भांग को अंतत: दवा के रूप में मान्यता दे दी गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से सिफारिश के बाद संयुक्त राष्ट्र के मादक पदार्थ आयोग ने इसे मादक पदार्थों की सूची से हटा दिया है। इससे पहले ऐसा कहा जाता था कि भांग स्वास्थ्य के लिहाज़ से बहुत कम फ़ायदेमंद है। संयुक्त राष्ट्र संघ के मादक पदार्थो की सूची में हेरोइन की भांग भी शामिल थी। संयुक्त राष्ट्र में दवा के रूप में मान्यता दिए जाने के बाद भी भांग के गैर मेडिकल इस्तेमाल को अभी प्रतिबंधित किया गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिबंधित मादक पदार्थों की लिस्ट से निकाले जाने के लिए मतदान हुआ। इसमें 27 सदस्यों ने पक्ष में और 25 सदस्यों ने इसके ख़िलाफ़ मतदान किया। ऐतिहासिक वोटिंग के दौरान अमेरिका और ब्रिटेन ने बदलाव के पक्ष में मतदान किया। उधर, भारत, पाकिस्तान, नाइजीरिया और रूस ने इस बदलाव का विरोध किया। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मान्यता दिए जाने के बाद उन देशों को इससे फ़ायद होगा जहां पर भांग की दवा की मांग बढ़ रही है। साथ ही अब भांग के दवा के रूप में इस्तेमाल के लिए शोध बढ़ सकता है।

याद रहे कि भारत में भांग का इस्तेमाल हज़ारों साल से हो रहा है। भांग का हिन्दू धार्मिक कर्मकांडों में भी इस्तेमाल किया जाता है। चीन में 15वीं शताब्दी ईसापूर्व में और मिस्र तथा प्राचीन यूनान में भांग का इस्तेमाल दवा के रूप में किया जाता रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ के मान्यता देने के बाद अब यह और ज़्यादा देशों को भांग को दवा के रूप में इस्तेमाल के लिए प्रेरित कर सकता है। दुनियाभर में 50 से ज़्यादा देशों में भांग के इलाज के लिए इस्तेमाल को मान्यता दी गई है। कनाडा, उरुग्वे और अमेरिका के 15 राज्यों में शौकिया तौर पर भांग के इस्तेमाल को मान्यता दी गई है। भारत में भी इसका धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाता है। हिन्दू समुदाय के होली के त्योहार पर तो इसकी डिमांड और ज़्यादा बढ़ जाती है। अब मैक्सिको और लग्ज़मबर्ग भी भांग को मान्यता देने जा रहे हैं।
इस बीच मादक पदार्थों के सुधार से जुड़े एक एनजीओ ने कहा कि भांग को संयुक्त राष्ट्र संघ से मान्यता मिलना करोड़ों लोगों के लिए बहुत अच्छी ख़बर है। ऐसे लोग दवा के रूप में भांग का इस्तेमाल करते हैं। यह भांग आधारित दवाओं की बढ़ती मांग को भी दर्शाता है। एनजीओ ने कहा कि मेडिसिन के रूप में इसके इस्तेमाल की मांग काफ़ी समय से लंबित थी। भांग पर प्रतिबंध औपनिवेशिक सोच और नस्लवाद का परिणाम था। भांग के इस्तेमाल को बैन करने से विश्वभर में करोड़ों लोगों को अपराध का दोषी मान लिया गया। वहीं दुनिया भर में नशे के ख़िलाफ़ अभियान चलाने वाली संस्थाओं ने यूएन द्वारा भांग को दी गई मान्यता पर अपना खेद जताया है। इन संस्थाओं का कहना है कि इससे दुनिया भर में नशे के कारोबार में और वृद्धि होगी जिससे युवा पीढ़ी को नुक़सान पहुंचेगा। (RZ)
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