मुहर्रम का महीना- 8
ईश्वर के मार्ग में संघर्ष करने वालों को अपने जीवन में तरह तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है लेकिन संघर्ष करने वालों को इस बारे में बहुत अधिक संयम से काम लेना चाहिए।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों ने हर प्रकार के बंधनों और बाधाओं का मुक़ाबला करते हुए ईश्वर के शत्रुओं के विरुद्ध युद्ध में अपने ख़ून की आख़िरी बूंद भी बहा दी। उन्होंने करबला में बिना किसी शंका के एसा काम किया जो पूरे इतिहास में याद किया जाएगा।




इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम करबला में एक स्थान पर कहते हैं कि इस तुच्छ ने मुझको एसे दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया जहां एक ओर अपमान तो दूसरी ओर मौत को गले लगाना है।
इमाम हुसैन के अनुसार मनुष्य के भीतर इस प्रकार की भावना जागृत कराने में उसके परिवार और प्रशिक्षण की बहुत बड़ी भूमिका होती है। यही कारण है कि इमाम हुसैन कहते हैं कि जिन पवित्र गोदों में मैं पलाबढ़ा हूं उनकी पवित्रता मुझको कभी भी इस बात की अनुमति नहीं देगी कि मैं अपमान को सहन करूं और एक नीच तथा पस्त इंसान का अनुसरण करूं।






बहुत से लोग एसे भी हैं जो अपनी आखों से संसार में होने वाले बदलाव को देखते रहते हैं, वे जीवन में आने वाले उतार चढ़ाव से भी अवगत हैं, उन्हें धनवानों के निर्धन हतने और निर्धन के धनवान होने की भी ख़बर है।
इमाम हुसैन अलैहिसस्लाम अपने जीवन के अंतिम समय तक इसी बात पर अडिग रहे कि बेइज़्ज़ती की ज़िंदगी से इज़्ज़त की मौत बेहतर है।
इमाम हुसैन से मिलने वाला पाठ आज भी लोगों का मार्गदर्शन करता है।